सोमवार, 30 जुलाई 2012

कांस्य पदक जीतने पर सहारा देगी गगन को दो किलो सोना

लंदन ओलिंपिक में गगन नारंग ने दस मीटर एयर रायफल में कांस्य पदक जीता है। अब सहारा इंडिया परिवार की तरफ से उन्हें दो किलो सोना दिया जाएगा क्योंकि सहारा इंडिया परिवार ने लंदन में होने वाले ओलिंपिक खेलों में पदक जीतने वाले भारतीय खिलाड़ियों को पुरस्कार देने की घोषणा की थी।
 
गौरतलब है कि सहारा परिवार लंदन ओलंपिक 2012 में प्रत्येक भारतीय स्वर्ण पदक विजेता खिलाड़ी को 5 किलो सोने का पदक, रजत पदक पाने वाले खिलाड़ी को 3 किलो सोने का पदक और कांस्य पदक पाने वाले खिलाड़ी को 2 किलो सोने का पदक देगा। 
 
टीम प्रतिस्पर्धा वाले खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के प्रत्येक सदस्य में 5 किलो सोने बराबर-बराबर पदक के रूप में वितरित किया जाएगा और इसी प्रकार रजत पदक जीतने वाली टीम के प्रत्येक सदस्य में 3 किलो सोना और कांस्य पदक जीतने वाली टीम के प्रत्येक सदस्य में 2 किलो सोना बराबर-बराबर पदक के रूप में वितरित किया जायेगा। सहारा इंडिया परिवार के मैनेजिंग वर्कर एवं चेयरमैन 'सहाराश्री' सुब्रत रॉय सहारा ने कहा, ''मैं पूरी दृढ़ता से यह विश्वास करता हूं कि प्रतिष्ठित ओलम्पिक खेलों में जो खिलाड़ी बतौर विजेता उभर कर आते हैं और हमारे देश के लिए सम्मान लाते हैं, शायद ही हम किसी सम्मान से उनके द्वारा किए गए अथक प्रयासों की बराबरी कर सकते हैं। यह अवार्ड हमारे द्वारा उन भारतीय खिलाड़ियों को सम्मानित करने का एक छोटा सा प्रयास है, जिन्होंने हमारे प्यारे देश के लिए इस उच्चस्तरीय अन्तरराष्ट्रीय समारोह में सफलता और सम्मान अर्जित किया है।''

लंदन ओलंपिक में भारत का खाता खुला, गगन नारंग को मिला कांस्य पदक

                 लंदन ओलंपिक में पहले पदक के लिए भारत को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा आज गगन नारंग ने कांस्य पदक जीत कर भारत को लंदन ओलंपिक में पहला पदक दिलाया।
                  भारत की झोली में पहला पदक आ गया है। निशानेबाजी में गगन नारंग को कांस्य पदक प्राप्त करने में सफलता मिली है। उन्होंने ओलंपिक के 10 मीटर एयर राइफल के फाइनल में यह उपलब्धि हासिल की है। उन्हें फाइनल राउंड में 701.6 अंक मिले। हालांकि अभिनव बिंद्रा इसमें फाइनल के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाए।
पूरे भारत में इस उपलब्धि पर खुशी की लहर है। गगन के माता-पिता अपने बेटे को लेकर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। उनके घर पर मिठाइयां बांटी जा रही हैं। खेल मंत्री अजय माकन ने भी गगन को बधाई दी है।
क्वालीफाइंग राउंड में गगन नारंग शुरू से बेहतरीन प्रदर्शन करके तीसरे नंबर पर रहे। गगन नारंग ने 6 राउंड में 598 पॉइंट बटोरे। गगन नारंग को केवल तीसरे राउंड में 98 पॉइंट मिले, जबकि बाकी सभी राउंड में गगन ने सभी 100 पॉइंट बटोरे।
10 मीटर एयर राइफल की स्पर्धा में अभिनव बिंद्रा मेडल के तगड़े हकदार थे। अभिनव बिंद्रा से भारत को इसलिए ज्यादा उम्मीदें थीं क्योंकि पिछली बार चीन में हुए ओलिंपिक में बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल में गोल्ड जीता था। लेकिन अभिनव बिंद्रा 594 पॉइंट्स के साथ 16वें नंबर पर रहे। बिंद्रा को 6 राउंड में 99,99,100,100,99 और97 पॉइंट्स मिले।

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

लंदन ओलंपिक 2012, इन पर टिकी है भारत की उम्मीदें

           दुनिया भर के खेल प्रेमियों की निगाहें २७ जुलाई से १२ अगस्त तक लंदन के विभिन्ना स्टेडियमों पर लगी रहेंगी, क्योंकि विश्व के सभी प्रमुख खिलाड़ी वहाँ पदकों के लिए जद्दोजहद करते हुए नजर आएँगे। २६ खेलों में ३०२ स्वर्ण पदक दाव पर होंगे जिनके लिए २०४ देशों के करीब १०४९० खिलाड़ी भाग्य आजमाएँगे। इस आयोजन के साथ ही लंदन के नाम एक विशिष्ट उपलब्धि जुड़ जाएगी, वह तीन बार ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी करने वाला पहला शहर बन जाएगा। बीजिंग में २००८ में हुए पिछले ओलिम्पिक खेलों में भारत ने ३ पदक हासिल किए थे जो उसका अभी तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस बार १३ खेलों में भारत का ८१ सदस्यीय दल हिस्सा लेगा। यह खेल महाकुंभ में भारत का अब तक का सबसे बड़ा दल होगा। भारत के लिए यह सबसे सफल ओलिम्पिक साबित होने का अनुमान है। देखना होगा कि करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरकर विजेंदरसिंह, एमसी मैरीकॉम, अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग, दीपिका कुमारी, साइना नेहवाल, सुशील कुमार, लिएंडर पेस व सानिया मिर्जा पदक दिलवा पाते हैं या नहीं।
           ओलिम्पिक पदक हर खिलाड़ी का सबसे बड़ा सपना होता है, लेकिन खेल महाकुंभ के आते ही भारतीयों के मन को एक ही सवाल कचोटता है कि हर क्षेत्र में दुनिया के सभी देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला यह देश खेल के क्षेत्र में क्यों फिसड्डी रह जाता है। एक अरब से ज्यादा की आबादी और किसी एक ओलिम्पिक में अभी तक जीते हैं सर्वाधिक ३ पदक। ये आँकड़े शर्मसार करने वाले है, लेकिन २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के बाद से देश के खेल स्तर में जबर्दस्त सुधार आया है। अत्याधुनिक सुविधाओं और खिलाड़ियों की तैयारियों को देखते हुए इस बार पूरा विश्वास है कि लंदन ओलिम्पिक भारत के लिए अभी तक के सबसे सफल ओलिम्पिक साबित होंगे।

निशानेबाजी

        निशानेबाजी से सभी को काफी उम्मीदें है। अभिनव बिंद्रा बीजिंग ओलिम्पिक खेलों में देश के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता बने थे। पिछले दो ओलिम्पिक खेलों (एथेंस और बीजिंग) से भारत इस खेल में पदक जीत रहा है और इस बार तो हमारे ११ निशानेबाज लंदन में चुनौती पेश करने उतरेंगे। निशानेबाजी में भारत एक महाशक्ति बन चुका है और लंदन में वह कुछ पदक जीतकर इस बात पर मुहर लगाना चाहेगा। १० मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत एक से ज्यादा पदक भी जीत सकता है, क्योंकि हमारे पास गत ओलिम्पिक चैंपियन बिंद्रा और विश्व कीर्तिमानधारी गगन नारंग मौजूद हैं। बिंद्रा ने अभ्यास स्पर्धाओं में अच्छा प्रदर्शन किया है। बिंद्रा को कड़ी चुनौती अपने ही देश के नारंग से मिलेगी। दो ओलिम्पिक खेलों में असफल रह चुके विश्व कीर्तिमानधारी नारंग तीसरी बार सफल होने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।            निशानेबाजी में जहाँ सारा ध्यान बिंद्रा और नारंग पर रहेगा, वहीं डबल ट्रेप में रोंजन सोढ़ी कमाल दिखाने को तैयार हैं। दुनिया का यह नंबर एक निशानेबाज लंदन ओलिम्पिक को यादगार बनाना चाहता है। 

तीरंदाजी 


          तीरंदाजी में भारत ने पिछले कुछ वर्षों में जबर्दस्त तरक्की की है और इसका सबूत है कि इस बार छः भारतीय तीरंदाज लंदन में अपनी चुनौती पेश करेंगे। देश को सबसे ज्यादा उम्मीद दुनिया की नंबर एक तीरंदाज दीपिका कुमारी से रहेगी। २००६ में १२ वर्ष की उम्र में खेल में पदार्पण करने के बाद से दीपिका ने सफलताओं के कई सोपान चढ़े हैं। १८ वर्षीया दीपिका का सपना है ओलिम्पिक पदक जीतना और उनके द्वारा इस बार इतिहास रचे जाने के प्रबल आसार हैं। दीपिका दक्षिण कोरियाई धुरंधरों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है। दीपिका व्यक्तिगत वर्ग के अलावा एल. बोम्बायला देवी और चक्रोवेलू स्वूरो के साथ टीम वर्ग में भी हिस्सा लेंगी। जयंत तालुकदार, राहुल बनर्जी और तरूणदीप रॉय की पुरुष रिकर्व टीम सही समय पर फॉर्म में आई है और उन्होंने इस खेल में भारत के पदक जीतने की संभावनाओं को बढ़ा दिया है। 

बैडमिंटन


          बैडमिंटन में भारतीय चुनौती की अगुवाई साइना नेहवाल करेंगी और पहली बार पाँच भारतीय खिलाड़ी ओलिम्पिक बैडमिंटन में चुनौती पेश करेंगे। भारतीय बैडमिंटन में इस समय एक ही सितारा दैदीप्यमान है और वह है साइना। चीनी प्रभुत्व को चुनौती देते हुए साइना ने कुछ समय पूर्व इंडोनेशियाई ओपन खिताब जीता था। उन्होंने वांग यिहान के अलावा सभी प्रमुख चीनी खिलाड़ियों को पराजित किया है। पिछले दिनों थाईलैंड ओपन और इंडोनेशियाई ओपन खिताब हासिल कर वे सही समय पर पूरी लय में नजर आ रही हैं और अब उनके सामने ओलिम्पिक में पदक नहीं जीत पाने के मिथक को तोड़ने और इतिहास बनाने की चुनौती रहेगी। पुरुषों में पी. कश्यप कुछ उलटफेर करने में सक्षम हैं। दो वर्गों में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला ज्वाला गुट्टा अपने जोड़ीदार वी. डीजू के साथ मिश्रित युगल वर्ग में और अश्विनी पोनप्पा के साथ महिला युगल वर्ग में चुनौती पेश करेंगी। 

टेनिस 


             प्रमुख खिलाड़ियों के अहं के टकराव के चलते भारतीय टेनिस टीम चयन विवाद काफी सुर्खियों में रहा। खिलाड़ियों के सामने अब चयन विवाद की कड़वाहट को भुलाते हुए एकजुट होकर देश के लिए पदक जीतने की चुनौती रहेगी। सानिया मिर्जा और लिएंडर पेस की जोड़ी से पदक की उम्मीद की जा सकती है। वैसे यह जोड़ी २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद एक साथ नहीं खेली है, लेकिन दोनों के अनुभव को देखते हुए इन्हें तालमेल बैठाने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए। महेश भूपति और रोहन बोपन्नाा की जोड़ी को पदक के दावेदार के रूप में नहीं देखा जा रहा है। वैसे इन दोनों पर अपने निर्णय को सही साबित करने का अतिरिक्त दबाव भी है। अब देखना होगा कि ये क्या कर पाते हैं। 

हॉकी


              ओलिम्पिक में भारत की पहचान हॉकी से रही है। बीजिंग ओलिम्पिक के वक्त भारत को बहुत शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी जब आठ बार का विजेता यह देश हॉकी में पात्रता भी हासिल नहीं कर पाया था। इस बार टीम इंडिया ने क्वालीफाई तो कर लिया है, लेकिन पदक जीतना अभी भी दूर की कौड़ी है। भारतीय कोच माइकल नॉब्स स्वयं टीम के शीर्ष छः में पहुँचने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं, यदि ऐसा भी हो जाता है तो यह टीम का शानदार प्रदर्शन माना जाएगा।


मुक्केबाजी


            देश को इस बार सबसे ज्यादा पदकों की उम्मीद मुक्केबाजी में है। विजेंदरसिंह की अगुवाई में विकास कृष्णन, शिवा थापा और एमसी मैरीकॉम को पदक के दावेदारों के रूप में देखा जा रहा है। विजेंदर ने चार वर्ष पहले बीजिंग ओलिम्पिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा था। उनकी इस सफलता से भारतीय मुक्केबाजी जगत ने ऐसी प्रेरणा ली कि इन चार वर्षों में उसका पूरा नक्शा ही बदल गया। २००९ विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता विजेंदर इस समय भले ही फॉर्म में नहीं हों, लेकिन उनकी चुनौती को कोई भी हलके में नहीं लेता है। विजेंदर के बाद विकास कृष्णन पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी। ६९ किग्रा वर्ग में विश्व यूथ चैंपियनशिप और २०१० एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता विकास स्वर्ण के इरादे से लंदन में रिंग में उतरेंगे। 

सबसे युवा मुक्केबाज शिवा थापा भी उलटफेर कर पदक जीतने में सक्षम हैं। महिलाओं में पाँच बार की विश्व चैंपियन २९ वर्षीया एमसी मैरीकॉम के पास अपने ओलिम्पिक पदक के सपने को साकार करने का पूरा मौका है।महिला चक्का फेंक में कृष्णा पूनिया को पदक के दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा ने ग्वाँगझू एशियाई खेलों में कांस्य पदक अर्जित किया था। उनके प्रदर्शन में इसके बाद से लगातार सुधार आ रहा है, लेकिन वे भी जानती हैं कि लंदन में उनके सामने चुनौती आसान नहीं होगी।सुशील कुमार ने बीजिंग ओलिम्पिक में देश को १९५२ के बाद कुश्ती में पदक दिलाया था। २०१० विश्व चैंपियनशिप के विजेता सुशील से इस बार भी देश को पदक की उम्मीद रहेगी। फ्रीस्टाइल के ६६ किग्रा वर्ग में हिस्सा लेने वाले सुशील पिछले कुछ समय से चोटों से जूझ रहे थे, लेकिन अब वे पूरी तरह फिट हैं और उन्हें विश्वास है कि वे लंदन में भी चमत्कार दिखाएँगे। सुशील के अलावा २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले योगेश्वर दत्त (६० किग्रा) से भी पदक की उम्मीद रहेगी। नरसिंह यादव (७४ किग्रा) और अमित कुमार (५५ किग्रा) भी चमत्कार कर सकते हैं। एकमात्र महिला पहलवान गीता फोगट की चुनौती को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।दुनिया भर के खेल प्रेमियों की निगाहें २७ जुलाई से १२ अगस्त तक लंदन के विभिन्ना स्टेडियमों पर लगी रहेंगी, क्योंकि विश्व के सभी प्रमुख खिलाड़ी वहाँ पदकों के लिए जद्दोजहद करते हुए नजर आएँगे। २६ खेलों में ३०२ स्वर्ण पदक दाव पर होंगे जिनके लिए २०४ देशों के करीब १०४९० खिलाड़ी भाग्य आजमाएँगे। इस आयोजन के साथ ही लंदन के नाम एक विशिष्ट उपलब्धि जुड़ जाएगी, वह तीन बार ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी करने वाला पहला शहर बन जाएगा। बीजिंग में २००८ में हुए पिछले ओलिम्पिक खेलों में भारत ने ३ पदक हासिल किए थे जो उसका अभी तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस बार १३ खेलों में भारत का ८१ सदस्यीय दल हिस्सा लेगा। यह खेल महाकुंभ में भारत का अब तक का सबसे बड़ा दल होगा। भारत के लिए यह सबसे सफल ओलिम्पिक साबित होने का अनुमान है। देखना होगा कि करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरकर विजेंदरसिंह, एमसी मैरीकॉम, अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग, दीपिका कुमारी, साइना नेहवाल, सुशील कुमार, लिएंडर पेस व सानिया मिर्जा पदक दिलवा पाते हैं या नहीं।ओलिम्पिक पदक हर खिलाड़ी का सबसे बड़ा सपना होता है, लेकिन खेल महाकुंभ के आते ही भारतीयों के मन को एक ही सवाल कचोटता है कि हर क्षेत्र में दुनिया के सभी देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला यह देश खेल के क्षेत्र में क्यों फिसड्डी रह जाता है। एक अरब से ज्यादा की आबादी और किसी एक ओलिम्पिक में अभी तक जीते हैं सर्वाधिक ३ पदक। ये आँकड़े शर्मसार करने वाले हैैं, लेकिन २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के बाद से देश के खेल स्तर में जबर्दस्त सुधार आया है। अत्याधुनिक सुविधाओं और खिलाड़ियों की तैयारियों को देखते हुए इस बार पूरा विश्वास है कि लंदन ओलिम्पिक भारत के लिए अभी तक के सबसे सफल ओलिम्पिक साबित होंगे।


एथलेटिक्स


          महिला चक्का फेंक में कृष्णा पूनिया को पदक के दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा ने ग्वाँगझू एशियाई खेलों में कांस्य पदक अर्जित किया था। उनके प्रदर्शन में इसके बाद से लगातार सुधार आ रहा है, लेकिन वे भी जानती हैं कि लंदन में उनके सामने चुनौती आसान नहीं होगी।

कुश्ती 


           सुशील कुमार ने बीजिंग ओलिम्पिक में देश को १९५२ के बाद कुश्ती में पदक दिलाया था। २०१० विश्व चैंपियनशिप के विजेता सुशील से इस बार भी देश को पदक की उम्मीद रहेगी। फ्रीस्टाइल के ६६ किग्रा वर्ग में हिस्सा लेने वाले सुशील पिछले कुछ समय से चोटों से जूझ रहे थे, लेकिन अब वे पूरी तरह फिट हैं और उन्हें विश्वास है कि वे लंदन में भी चमत्कार दिखाएँगे। सुशील के अलावा २०१० कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले योगेश्वर दत्त (६० किग्रा) से भी पदक की उम्मीद रहेगी। नरसिंह यादव (७४ किग्रा) और अमित कुमार (५५ किग्रा) भी चमत्कार कर सकते हैं। एकमात्र महिला पहलवान गीता फोगट की चुनौती को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

ओलंपिक खेल, हाकी में भारत के ध्यानचंद अव्वल

            अब तक २१७ भारतीय खिलाड़ी १८ ओलिम्पिक खेलों में हॉकी खेलकर ओलिम्पियन बने हैं। भारत ने सर्वाधिक ११४ मैच खेले, सर्वाधिक ७५ जीते, सर्वाधिक ४१५ गोल दागे है। ९१ भारतीयों ने ४१० गोल बनाए हैं। जापान के खिलाफ ५ गोल जूरी द्वारा १९६८ के भारत-जापान मैच में जापान द्वारा वॉकआउट करने पर अवॉर्ड किए गए थे। धनराज पिल्लै ने ४ ओलिम्पिक खेलकर सर्वाधिक २७ मैचों में हिस्सा लिया। महान ध्यानचंद ने सर्वकालिक सर्वाधिक ३९ गोल दागे हैं।कौशल के नियाग्रे में विपक्षियों को ठग कर मिली अद्भुत विस्मयकारी अचरज भरी जीत पर गर्व से ऊँचा सिर अपने जीवन को धन्य मानता है । हॉकी कभी भारत-पाकिस्तान की बपौती रही है। एम्सटरडम (१९२८) से म्यूनिख (१९७२) तक के लगातार ४४ वर्षों में उपमहाद्वीपीय माटी की सुगंध ही ओलिम्पिक प्राँगण में महकी। इसके बाद नियमों तथा सतहों में परिवर्तन से एशियाई देशों का वर्चस्व समाप्त होता गया। हर ओलिम्पिक में मेजबान नई तरह की सतह हॉकी केओलिम्पिक हॉकी में सर्वकालिक ८ स्वर्ण पदक के गौरव-वैभव से हम भारतीयों के लिए ओलिम्पिक, स्वप्निल सुनहरे सपनों का स्त्रोत बना है। वर्षों की साधना, अभ्यास, मेहनत और तपस्या से विजयी मंच पर सोने के तमगे से सुशोभित गले को देखने का सुकून स्वर्ग से भी सुखद लगता है। प्रतिदिन प्रार्थना, आराधना, अरदास, दुआ करने वाले हिन्दुस्तानी अधिवर्ष में अंजुलि पसार खिलाड़ियों के लिए अमृत मांगते हैं ताकि सुधा पान कर एथलीट कौशल की खूबियों में हिमालयी ऊँचाइयाँ छूकर जीत की आभा से विरोधियों को धराशायी कर सकें। 

सर्वकालिक ओलिम्पिक हॉकी रिकॉर्ड (पुरुष)

सर्वाधिक खिताब भारत ८ (१९२८, ३२, ३६, ४८, ५२, ५६, ६४, ८०) 

अधिकतम स्वर्ण पदक ३ (ध्यानचंद , रिचर्ड एलन, बलबीर सीनियर, रणधीर सिंह जेंटल, रंगनाथन फ्रांसिस, लेसली क्लॉडियस, उधम सिंह-सभी भारत) 

ओलिम्पिक में पहला गोल स्कॉटलैंड के इवान लैग ने जर्मनी के विरूद्ध ४-० की जीत में दागा २९ अक्टूबर १९०८ को लंदन में।

न्यूनतम समय में गोल १५ सेकंड में भारत के अजित सिंह ने अर्जेंटीना के खिलाफ दागा मांट्रियल में १८ जुलाई १९७६ को ।

टूर्नामेंट में सर्वाधिक गोल १७ - हॉलैंड के टिज कु्रज ने म्यूनिख (१९७२) में ।

टीम द्वारा सर्वाधिक गोल ४३ भारत ने मॉस्को (१९८०) में ।

सर्वाधिक व्यक्तिगत गोल ३९ भारत के ध्यानचंद ने मारे ३ ओलिम्पिक (१९२८,३२,३६) में ।

फाइनल मैच में सर्वाधिक गोल ५ भारत के बलवीर सीनियर ने मारे हेलसिंकी में हॉलैंड के विरूद्ध ६-१ की जीत में २४ जुलाई १९५२ को ।

सबसे बड़ी जीत लॉस एंजिल्स में भारत ने अमेरिका को हराया २४-१ से ११ अगस्त १९३२ को ।

सबसे कम उम्र के खिलाड़ी अर्जेंटीना के सीजार रॉगुसो मांट्रियल (१९७६) में १६ वर्ष २९ दिन की उम्र में खेले ।

सबसे अधिक उम्र के खिलाड़ी अमेरिका के टिजर्क हिडे लीगस्ट्रा मेलबोर्न (१९५६) में ४४ वर्ष ३०२ दिन की उम्र में खेले । लंदन इससे पहले १९०८ और १९४८ में भी ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी कर चुका है। वह आधिकारिक तौर पर तीसरी बार ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी करने वाला पहला शहर बन गया है। ग्रेट ब्रिटेन ने १९४८ में अपनी मेजबानी में केवल ३ स्वर्ण पदक जीते थे और पदक तालिका में १२वें स्थान पर रहा था।

लंदन ओलंपिक 2012, कुश्ती, पाँच से भारत को आस


                 ओलिम्पिक खेलों की शुरुआत से ही कुश्ती इसका अभिन्ना अंग रहा है। किसी भी अन्य खेल की ऐसी पारंपरिक छबि नहीं रही जैसी कुश्ती की रही है। ग्रीको रोमन शैली की कुश्ती को विश्व में सबसे पुराने खेल के रूप में पहचाना जाता है। जब एथेंस में १८९६ में आधुनिक ओलिम्पिक खेलों की शुरुआत हुई तो यह खेल सबसे ज्यादा लोकप्रिय था। १९०० के ओलिम्पिक खेलों में इसे स्थान नहीं मिला। कुश्ती में फ्री-स्टाइल शैली की शुरुआत १९०४ के ओलिम्पिक से हुई। कुश्ती अब केवल ताकत का ही खेल नहीं रह गया है,बल्कि इसमें गति व दिमाग का महत्व ज्यादा बढ़ गया है।
            ओलिम्पिक हॉकी में सर्वकालिक ८ स्वर्ण पदक के गौरव-वैभव से हम भारतीयों के लिए ओलिम्पिक, स्वप्निल सुनहरे सपनों का स्त्रोत बना है। वर्षों की साधना, अभ्यास, मेहनत और तपस्या से विजयी मंच पर सोने के तमगे से सुशोभित गले को देखने का सुकून स्वर्ग से भी सुखद लगता है। प्रतिदिन प्रार्थना, आराधना, अरदास, दुआ करने वाले हिन्दुस्तानी अधिवर्ष में अंजुलि पसार खिलाड़ियों के लिए अमृत मांगते हैं ताकि सुधा पान कर एथलीट कौशल की खूबियों में हिमालयी ऊँचाइयाँ छूकर जीत की आभा से विरोधियों को धराशायी कर सकें।

            ओलिम्पिक खेलों में दो शैली की कुश्ती होती है, जिनमें थोड़ा सा अंतर होता है। ग्रीको रोमन शैली में पहलवान को अपने पैरों का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होती, साथ ही वह विपक्षी के पैरों पर वार भी नहीं कर सकता। फ्रीस्टाइल शैली में पहलवान पैरों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
                    ओलिम्पिक में महिला कुश्ती को पहली बार २००४ में शामिल किया गया। लंदन ओलिम्पिक में ३४४ पहलवान १८ पदकों के लिए होड़ में रहेंगे जिनमें से १४ में पुरुष और ४ वर्गों में महिला पहलवान चुनौती पेश करेंगी। महिलाएँ केवल फ्रीस्टाइल वर्ग में चुनौती पेश करेंगी जबकि पुरुष दोनों वर्गों में शामिल होंगे। महिलाओं में जापान का दबदबा शुरू से ही रहा है। इस बार भी ६३ किग्रा वर्ग में जापान की काओरी इचो अपने लगातार तीसरे ओलिम्पिक पदक की आस में मैट पर उतरेंगी। २९ साल की साओरी योशिदा ने हाल ही में अपना लगातार नौवाँ विश्व चैंपियनशिप खिताब जीता है। यहाँ वे ५५ किग्रा वर्ग में अपने लगातार तीसरे ओलिम्पिक स्वर्ण पदक के लिए प्रयास करेंगी। यदि वे यहाँ सफल रहीं तो रूस के महान पहलवान एलेक्सांद्र केरेलिन के एक दर्जन अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदकों की बराबरी कर लेंगी। पुरुष वर्ग में रूसी पहलवानों का दबदबा रहा है और वह लंदन में भी कायम रहने की उम्मीद है। ईरान और अजरबैेजान को भी पुरुष पहलवान कई पदक दिलाते आए हैं। अमेरिका भी इस खेल में शक्ति माना जाता है। अमेरिका के २० वर्षीय एलिस कोलमेन (६० किग्रा) अपने दल के सबसे युवा पहलवान हैं और उनसे ग्रीको रोमन वर्ग में बेहद अपेक्षाएँ हैं।

पाँच से भारत को आस 


           आधुनिक भारत में कुश्ती को लोकप्रियता प्रदान करने का श्रेय सुशील कुमार को जाता है। बीजिंग में सुशील ने जो सफलता पाई उसने भारतीय कुश्ती को सुर्खियों में ला दिया। अब लंदन ओलिम्पिक में भारत को सुशील सहित अन्य पहलवानों से ज्यादा पदकों की उम्मीद है। ओलिम्पिक में भारत से पाँच पहलवान अखाड़े में ताल ठोकेंगे, जिनमें महिला पहलवान गीता फोगट भी शामिल हैं। महाबली सतपाल के शिष्य सुशील कुमार (६६ किलो) और योगेश्वर दत्त (६० किलो) का यह लगातार तीसरा ओलम्पिक होगा। अमित, नरसिंह यादव और गीता का यह पहला ओलिम्पिक है। 

गीता पर दारोमदार


         गीता फोगट (५५ किलो) ओलिम्पिक में हिस्सा लेने वाली देश की पहली महिला पहलवान हैं। वे हरियाणा से आई हैं यह देश का वह हिस्सा हैं जहाँ भ्रूण हत्या के मामले बहुतायत में सामने आते हैं। महिलाओं को ज्यादा आजादी नहीं है। ऐसे में गीता का प्रदर्शन देश की लड़कियों के लिए आदर्श स्थापित करेगा।

लंदन ओलंपिक 2012, कौन बनेगा फर्राटा किंग ?


                  ओलिम्पिक खेलों में १०० मीटर फर्राटा दौड़ का हमेशा से ही प्रशंसकों को बेसब्री से इंतजार रहता है। पिछले कुछ दिनों में यह प्रतिद्वंद्विता ओलिम्पिक १०० मी. और २०० मी. चैंपियन उसेन बोल्ट और उनके जमैका के साथी व विश्व चैंपियन योहान ब्लैक के बीच पनपी है। लंदन ओलिम्पिक में इन दोनों को इन्हीं के देश के असाफा पॉवेल, अमेरिका के टायसन गे और डोपिंग के आरोप में चार वर्ष के निलंबन के बाद ट्रैक पर लौटे ३० वर्षीय जस्टिन गेटलिन कड़ी चुनौती देंगे। ये एथलीट १००मी. की स्टार्ट लाइन पर सबसे कम समय निकालने के लिए होड़ में रहेंगे और जो इसमें सफल रहेगा वह ओलिम्पिक चैंपियन का तमगा लगाएगा।
                 ३०वें ओलिम्पियाड के ट्रैक एंड फील्ड की सबसे चमकदार स्पर्धा में इनके बीच ट्रैक पर वर्चस्व की जबर्दस्त टक्कर देखने को मिलेगी। कुछ वर्ष पहले तक उसेन बोल्ट किसी सुपर ह्यूमन के तौर उभरे थे और रेस दर रेस वे और तेज होते गए। ट्रैक पर उतरने से पहले ही उनके गले में सोने का तमगा तय माना जाता था। लेकिन अब उनके ट्रेनिंग पार्टनर योहान ब्लैक के आने से स्थितियाँ बदल चुकी हैं। बोल्ट इस वर्ष अपने देश के ही सबसे तेज व्यक्ति नहीं थे। पिछले वर्ष बोल्ट को दाएगु में हुई विश्व चैंपियनशिप में १०० मी. दौड़ के फाइनल्स में फॉल्स स्टार्ट के बाद अपात्र करार दिया गया था। ब्लैक ने वहाँ स्वर्ण पदक जीता था। छः दिन बोल्ट ने २०० मी. दौड़ जीतकर लंदन में दोनों दौड़ के खिताब के दावेदारों में शामिल होने का ऐलान कर दिया था। लेकिन हाल ही में जमैका में हुए ओलिम्पिक ट्रायल्स के दौरान बोल्ट १०० मी. और २०० मी. दोनों में ब्लैक से पिछड़ गए थे। हालाँकि उन्हें २०० मी.की रेस के बाद में माँसपेशियों में खिंचाव के कारण ट्रैक पर से उठाकर ले जाना पड़ा था। बाद में उन्होंने ओलिम्पिक के मद्देनजर डायमंड लीग से भी हटने का निर्णय लिया था।
               बोल्ट पहले भी कई बार यह स्वीकार कर चुके हैं कि उन्हें यदि कोई हरा सकता है तो वह हैं उनके ट्रेनिंग पार्टनर ब्लैक। ब्लैक की ओलिम्पिक तैयारी धमाकेदार रही है और उन्होंने हाल ही में लूसर्न मीट में ९.८५ सेकंड में १०० मी. की दूरी तय की थी। ब्लैक का सर्वश्रेष्ठ समय ९.७५ सेकंड था, जब उन्होंने ओलिम्पिक ट्रायल्स में बोल्ट को पछाड़ा था। ट्रायल्स में ही उन्होंने २०० मी. में १९.८० सेकंड के सर्वश्रेष्ठ समय के साथ बोल्ट को मात दी थी। इस वर्ष का सबसे तेज समय बोल्ट (९.७६ सेकंड) और २००४ के ओलिम्पिक चैंपियन जस्टिन गैटलिन (९.८०) निकाल सके हैं। 
             "द बीस्ट" के नाम से पहचाने जाने वाले ब्लैक के लिए अपने स्कूल के कोच को छोड़कर बोल्ट के कोच ग्लेन मिल्स के साथ जुड़ना सबसे अच्छा निर्णय रहा। २२ वर्षीय ब्लैक प्रशिक्षण के प्रति बेहद गंभीर रहे हैं और इसमें बोल्ट ने भी उनकी काफी मदद की। असाफा पॉवेल ओलिम्पिक ट्रायल्स में तीसरे स्थान पर रहे थे।